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माँ, बेहेन, बीवी, बहु हूं मैं ,
सभी सूरत में स्नेहमयी मूरत हूं मैं ,
हर ख्वाहिश, हर दर्द को सीने में दफना,
कभी लब पे न आने वाली इक हसरत हूं मैं ,
कैसे भी, कितने भी हो मुश्किलात,
या फिर कितने भी हों विपरीत हालात ,
बेइन्तहा सब्र की मूरत हूं मैं।
बदल देती हूं रुख हवा का भी इक बारी,
ऐसी बेमिसाल शख्सियत हूं मैं,
जी हैं ऐ दुनिया वालों,
हौसलों से तकदीर बदलने वाली,
खुदा की खूबसूरत सी इनायत,
इक औरत हूं मैं, इक औरत हूं मैं।
Savitri Joshi
Retired Senior Librarian & Poet
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